शून्य (0) की खोज किसने और कब की? (0 Ki Khoj Kisne Ki)

0 ki khoj kisne ki

नमस्कार दोस्तो, स्वागत है आपका एक और रोचक ब्लॉग में जिसमे हम पढ़ेंगे Iआज इस ब्लॉग में हम शून्य (0) की खोज किसने की (Zero Ki Khoj Kisne Ki thi) के बारे में बात करेगे। दोस्तों जब भी शून्य के अविष्कार की बात आती हैं, तब हमारे दिमाग में ऐसे बहुत से सवाल उठते है, जैसे की जीरो का आविष्कार किसने किया और कब हुआ?, जीरो क्या हैं? आर्यभट्ट का शून्य के अविष्कार में क्या योगदान हैं?, जीरो के अविष्कार से पहले गणना कैसे होती थी, शून्य (0) की खोज भारत में कब और कैसे हुई? ये सारे सवाल का जवाब आज हम आपको इस ब्लॉग मे देखे I 

दोस्तों शून्य शुन्य (0) का आविष्कार किसने किया I (शुन्य / जीरो) की खोज, आर्यभट्ट नाम के एक व्यक्ति ने की थी I उन्होंने 628 ईस्वी में जीरो की खोज की थी। आर्यभट्ट ने शून्य के अविष्कार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था । आर्यभट ने (जीरो) की खोज ‘अंको मे किया था, ‘ना कि शब्दों’ में खोज, उससे पहले शून्य (अंक को) शब्दो मे शुन्य कहा जाता I उन्होंने शून्य को संख्यात्मक रूप में परिभाषित किया और इसे एक अद्वितीय और अनन्त संख्या के रूप में वर्णित किया। आर्यभट्ट ने शून्य का उपयोग गणना में, विशेषकर बीजगणित और खगोलशास्त्र में किया। उनके खगोलशास्त्रीय ग्रंथ “आर्यभट्टीय” में शून्य का विवरण सूर्य और चंद्र ग्रहणों के समय की गणना में उपयोगी था। आर्यभट्ट का शून्य के सिद्धांत ने भारतीय गणित को एक नए दिशा से प्रेरित किया।

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Zero की अविष्कार किसने किया था? (0 Ka Avishkar Kisne Kiya Tha)

शून्य (0) की खोज का श्रेय आर्यभट्ट को जाता है, जो 5वीं शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथ “आर्यभट्टीय” में शून्य के सिद्धांत को प्रस्तुत किया और इसे संख्यात्मक रूप में परिभाषित किया। उन्होंने शून्य को बीजगणित और अन्य गणितीय समस्याओं के हल के लिए प्रयोग किया। इनका योगदान गणना में भी था, जहां उन्होंने शून्य को प्रयुक्त किया। आर्यभट्ट ने शून्य को सर्वशक्तिमान और अद्वितीय संख्या के रूप में वर्णित किया, जिससे गणना में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला। इससे उनका योगदान भारतीय गणित के विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

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शून्य (0) क्या है?

शून्य (0) एक संख्या है और इसे अंग्रेजी में ‘जीरो’ भी कहा जाता है। जो किसी सांकेतिक मान या गणना में अभिव्यक्ति के रूप में प्रयुक्त होती है। यह सबसे छोटी प्राकृतिक संख्या है और इसे पूर्णांक के रूप में भी जाना जाता है। शून्य को आधुनिक गणित में एक महत्वपूर्ण संख्या माना जाता है जिसका उपयोग गणितीय और वैज्ञानिक अनुसंधानों, संख्यात्मक सिद्धांतों, और विभिन्न गणना प्रक्रियाओं में होता है। यह सभी संख्याएं शून्य के साथ जोड़ी जा सकती हैं और इसे न्यूनतम संख्या के रूप में भी देखा जा सकता है। और अगर शून्य को किसी भी संख्या में रखा जाए तो इसका मान दस गुना बढ़ा देता है, उदाहरण के लिए, यदि 2 के सामने 1 शून्य रखा जाता है तो 20 और 20 के सामने 0 रखा जाता है, तो 200 और 200, अगला एक 2000 हो जाएगा। और अगर किसी संख्या के आगे शून्य (0) रखा जाए तो उसका मान वैसा ही रहता है जैसे की  222 के सामने 0 रखा जाये, तो वह 0222 होगा यानी संख्या का कोई मान घटेगा या बढ़ेगा नहीं, और यदि शून्य को किसी वास्तविक संख्या से गुणा किया जाए तो वह वापस 0 पर आ जाएगा।

शून्य का सर्वप्रथम उपयोग कब किया गया? 

शून्य का सर्वप्रथम उपयोग भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट द्वारा किया गया था, जो 5वीं शताब्दी में थे। उन्होंने शून्य को संख्यात्मक रूप में परिभाषित किया और इसे गणना में उपयोग करने के तरीकों की चर्चा की। आर्यभट्ट के ग्रंथ “आर्यभट्टीय” में शून्य का विस्तारपूर्ण विवेचन है, जिससे उनका योगदान गणितीय और खगोलशास्त्रीय क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। आर्यभट्ट ने शून्य का उपयोग बीजगणित, गणनात्मक समीकरणों, और खगोलशास्त्र में किया और इसे भारतीय गणित के इतिहास में महत्वपूर्ण बना दिया।

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निष्कर्ष

इस ब्लॉग के माध्यम से हमने देखा कि शून्य की खोज किसने की? (0 Ki Khoj Avishar Ki) और हमने शून्य की खोज के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, आर्यभट्ट के योगदान, और शून्य के आधुनिक रूप के महत्वपूर्ण गुणों पर चर्चा की है। इससे हम देख सकते हैं कि शून्य की खोज ने भारतीय गणित को विश्व में मान्यता प्रदान करने में कैसे मदद की है और इसने गणित के क्षेत्र में एक नया युग आरंभ किया है। उम्मीद करते है की यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा और भी मजेदार जानकारी के लिए Gk Study Point से जुड़े रहे।

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