दोस्तों एक प्रसिद्ध कहावत है जो कि गांव के इलाकों में ज्यादा उपयोग किया जाता हैं अगर कोई बहुत पढ़ा लिखा है और वह हर किसी को पढने मे पिछे छोड देता है I और उसके सामने कोई ऐसा आदमी आ जाये जिनको पढ़ना लिखना बिल्कुल भी नहीं आता है अनपढ आदमी आ जाए । और उससे वह कहते है की लो और इस किताब मे जो भी लिखा है ।
आप मुझे समझाओ या पढ़ के दिखाओ तो वह व्यक्ति कहता है क्यो मजाक कर रहे हो मेरे आगे तो काला अक्षर भैंस बराबर है जिस तरह से भैंस का रंग काला होता है उसी की तरह दोनों काले रंग के होते हैं I
ये कहावत ऐसे लोगों के लिए उपयोग किया जाता है जो बिल्कुल भी पढ़ा लिखा या अक्षरों को नहीं समझ पाता है I
काला अक्षर भैंस बराबर का वाक्य प्रयोग (Sentence)
वाक्य – मैं हिंदी मीडियम में पढ़ा हुआ हूं इंग्लिश का पत्र पढ़ना मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर है I
वाक्य – जब मैंने रोहित को किताब पढ़ने को कहा तो रोहित बोला कि यह मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर हैI
वाक्य – जब मैंने विकाश को कार चलाने को कहा तो रोहित बोला कि यह मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर हैI
काला अक्षर भैंस बराबर मुहावरे पर कहानी || kala akshar bhains barabar story on idiom in Hindi
यह कहानी एक गांव के एक आदमी के बारे में है, जिनका नाम रामलाल था। रामलाल गरीब था और उसे पढ़ाई लिखाई की कोई ज्ञान नहीं था। उसके पास एक छोटी सी खेती की ज़मीन थी, जिसे वह खेती करके अपने परिवार का पेट पालता था।
गांव में रामलाल को “काला अक्षर भैंस बराबर” कहकर मज़ाक उड़ाया जाता था, क्योंकि वह पढ़ा-लिखा नहीं था और उसकी शिक्षा अधूरी थी। लोग उसके साथ मजाक किया करते थे और उसे नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता था ।
लेकिन रामलाल उन सभी मजाकों पर ध्यान नहीं देता था और आत्म-संश्रद्धा के साथ अपना काम जारी रखता। वह हमेशा मेहनत करता और अपनी खेती को सफलता की ओर लेजाता I
एक दिन, गांव में एक शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन हुआ, और रामलाल ने भी भाग लिया। वह खुद पर पूरा विश्वास रखता था कि शिक्षा केवल पढ़ा-लिखाई में ही नहीं होती, बल्कि यह मनुष्य की आत्मविश्वास को भी बढ़ा सकती है।
रामलाल ने शिक्षा कार्यक्रम में भाग लेने के बाद लोगों को यह सिखाया कि शिक्षा केवल पढ़ाई नहीं होती, बल्कि यह आपकी सोच और आत्म-संश्रद्धा को बढ़ावा देने का भी जरिया हो सकती है।
रामलाल की बातें लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ गईं और उन्होंने अपनी मेहनत और आत्म-संश्रद्धा से अपना स्थान साबित किया। उसका उदाहरण गांव के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया, पढ़ाई और लिखाई से ही नहीं, बल्कि मनोबल को भी मजबूत कर सकती है।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि शिक्षा केवल पढ़ाई और लिखाई से ही नहीं होती, बल्कि आत्म-संश्रद्धा और मेहनत के साथ यह किसी के भी सपनों को पूरा करने में मदद कर सकती है। रामलाल ने अपने आत्म-संश्रद्धा की बदौलत अपने गरीबी के बावजूद अपने लक्ष्यों को पूरा किया और उन्होंने अपने गांव के लोगों को भी सही दिशा में आगे बढ़ने का मार्गदर्शन किया।
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